कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Wednesday, September 4, 2013

चोरी की भली आदत

चोरी की भली आदत 

पहले दिल चुराकर तुमने अब नींद चुरा ली है |
पर चोरी की यह आदत लगती बड़ी भली सी है |

होंठ दबाकर दांतों से
और मंद-मंद मुस्काना |
तिरछा-तिरछा चल करके
बार-बार आंचल लहराना |
यह अदा पुरानी हो कर लगती नयी नयी सी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

पवन सन्निकट आता जब
छूकर सुरभित देह तुम्हारी |
बैरागी मन भी विचलित हो
तकता तब राह तुम्हारी |
प्रतीक्षा की एक घड़ी भी लगती एक सदी सी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

सपनो में तेरा आना-जाना
दिल को तो भाता है |
पर पूनम की रातों में
तारे गिनना नहीं सुहाता है |
हमने यह पीढ़ा तुमसे कितनी बार कही भी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

दो पल का साथ तुम्हारा
अमृत-कलश पी लेने सा |
बाहों के बंधन में सुख 
क्षण में सदियां जी लेने सा |
दुनिया में मुझ जैसा क्या कोई और धनी भी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

कांटो को चुन चुन कर मैने
राहों में सुमन बिखेरे |
मेरी झोली में जितने सुख है
अब सब के सब तेरे |
जिंदगी समीप तुम्हारे लगती खिली खिली सी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

अरुण अर्णव खरे