कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Tuesday, February 26, 2013

जिंदगी मे प्यार फिर

थोडा सा सुक्रोज हो, थोडा सा सोडियम |
जिंदगी मे प्यार फिर, कभी ना होगा कम |


आइसोटोप प्यार के, कोई होते नहीं |
होता है नयूकिलयर भी, इसका और कहीं |
अपने आप में परिपूर्ण वेलेंसी इसकी,
केमिकल-बाण्डिंग भी ऐसी, है कहीं नहीं |
मन की उमंगें, तरंगें बन पहुंचती जब
रेडियोएक्टिव होता तन, जैसे थोरियम |  जिंदगी मे प्यार फिर ***


न दाब, न ताप पर, प्यार रूप बदलता नहीं,
मन होता है हलका, जैसे हीलियम भरी |
मुस्कान करती है किसी कूलेंट सा असर,
जब रूठते है वह, दिल होता है मरकरी |
वासना का एसिड यदि मन-जार मे नहीं है,
देखिए दमकेगा प्यार भी जैसे रेडियम |  जिंदगी मे प्यार फिर ***

Monday, February 25, 2013

सरहद से संदेशा मां के नाम

सरहद से मां मैं तुमको, अपना प्रणाम भेजता हूं |
बाबू को पैरीपौना, सबको राम राम भेजता हूं |


अबकी बरस है सुना वहां, गांव में सर्दी बहुत पडी |
मां तुम जलाकर रखती हो ना, रोज ध्यान से सिगडी |
नई रजाई सिलवा ली तुमने और बाबू को बंडी |
या बिट्टो को शाल दिला, ऐसे ही गुजर-बसर कर ली |
सच बतलाना मां कैसा है गठिया, खांसी बाबू की
बनवा कर जडी-बूटी वाला काढा, बाम भेजता हूं |


अगली बार छुट्टी लेकर जब भी मैं घर पर आऊंगा |
कम से कम एक धाम की मैं तुमको सैर कराऊंगा |
अट्ठारह की होगी बिट्टो अगले साल जुलाई में |
उसके लिए है रिश्ता भेजा, साथी की एक ताई ने |
धूमधाम से विदा करेंगें अपनी रानी बहना को,
पाती के संग रख आशीष, उसके नाम भेजता हूं |


दुश्मन तो काफिर है, लाशों के भी शीश काटता है |
हम सामने पड जाएं अगर, दिखाकर पीठ भागता है |
सच कहता हूं एक बार ये बंधे हाथ खुल जाएं अगर |
शत्रु की इंच-इंच धरा पर, लहरा देंगें तिरंगा फर फर |
हर वतन परस्त प्रण ले अभी, लगाकर माटी सिर पर
दुश्मन की धरती पर रखकर पांव, पैगाम भेजता हूं |


सौगंध मुझे गंगा, यमुना सतलज मे बह्ते पानी की|
राणा सांगा, प्रताप, शिवाजी की शौर्य-कहानी की |
हर बहना की राखी की  चौपालों की खलिहानों की |
सैखों, हमीद और योगेंद्र जैसे वीर जवानों की |
दुश्मन की पाप कहानी का उपसंहार लिखेंगें अब,
सरहद से यही संदेशा जन-जन के नाम भेजता हूं |


सरहद से मां मैं तुमको, अपना प्रणाम भेजता हूं |
बाबू को पैरीपौना, सबको राम राम भेजता हूं |

Friday, February 15, 2013

घर को तुमने शिवालय बनाया

मरूथल सा नीरव था जीवन मेरा,
तुमने शुभ-सुरभित चमन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस,
कोरे पृष्ठों को रामायण बना दिया |


तुमने होंठों से ना जितना कहा,
उससे अधिक वाचाल नयनो से कहा |
पहली मुलाकात मे जुबां ना खुली,
पर मन है ना फिर कभी बस मे रहा |


सुधियों से तुम्हारी मन कंचन हुआ,
साथ ने  देह को सुदर्शन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***


जिंदगी मे हर कदम कदम पर तुम,
छाया बनकर मेरे संग संग चले |
हताश ना कर सके मुझको कभी,
पथरीले रास्ते हों या फिर जलजले |


हर परीक्षा में सफल हम हुए और, 
मुझे महकता हुआ चंदन बना दिया |

लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***

तुमने रोपे थे जो पौधे कभी,
सुगंध उनकी भी अब छाने लगी है |
और सुवासित होगी बगिया हमारी,
ये उम्मीदें भी मन में जगी है |


घर को तुमने शिवालय बनाया,
जीवन-सफ़र को तीर्थाटन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***

Tuesday, February 12, 2013

मुक्तक



लगता है जैसे सबकुछ अपनी जगह ठहर गया है |
सब कुछ वैसा ही है फिर भी लगता नया नया है |
यह मोहब्बत है, प्यार है या है केवल आकर्षण
कोई तो बतलाए मुझको, आखिर माजरा क्या है |



लोगों से आप इस तरह ना मांगिये मशविरे |
कुछ पागल कहेंगें तो कुछ कहेंगें शिरफिरे |
पाने से ज्यादा जब मन केवल खोने का करे,
तो यही प्यार है, यही प्यार है अरे बावरे |




मन की भरी गागर भी जब रीती-रीती सी लगे |
हर धडकन सितार, हर सांस जब बांसुरी सी बजे |
यह प्यार का अहसास है पगले, इसमें डूबकर
टीस की अनुभूति भी सुखद, मीठी-मीठी सी लगे |




नयनों से नेह निमंत्रण दे, यूं बुलाया ना करो |
बेवजह अपने कंगन, चूडियां खनकाया ना करो |
कितनी बार कहा तुमसे, लजा जाता है चांद तक
छतपर बिना दुपट्टे के, अनायास जाया ना करो |


 

Monday, February 4, 2013

जंगल से कुछ दोस्त आए है ****