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Monday, February 25, 2013

सरहद से संदेशा मां के नाम

सरहद से मां मैं तुमको, अपना प्रणाम भेजता हूं |
बाबू को पैरीपौना, सबको राम राम भेजता हूं |


अबकी बरस है सुना वहां, गांव में सर्दी बहुत पडी |
मां तुम जलाकर रखती हो ना, रोज ध्यान से सिगडी |
नई रजाई सिलवा ली तुमने और बाबू को बंडी |
या बिट्टो को शाल दिला, ऐसे ही गुजर-बसर कर ली |
सच बतलाना मां कैसा है गठिया, खांसी बाबू की
बनवा कर जडी-बूटी वाला काढा, बाम भेजता हूं |


अगली बार छुट्टी लेकर जब भी मैं घर पर आऊंगा |
कम से कम एक धाम की मैं तुमको सैर कराऊंगा |
अट्ठारह की होगी बिट्टो अगले साल जुलाई में |
उसके लिए है रिश्ता भेजा, साथी की एक ताई ने |
धूमधाम से विदा करेंगें अपनी रानी बहना को,
पाती के संग रख आशीष, उसके नाम भेजता हूं |


दुश्मन तो काफिर है, लाशों के भी शीश काटता है |
हम सामने पड जाएं अगर, दिखाकर पीठ भागता है |
सच कहता हूं एक बार ये बंधे हाथ खुल जाएं अगर |
शत्रु की इंच-इंच धरा पर, लहरा देंगें तिरंगा फर फर |
हर वतन परस्त प्रण ले अभी, लगाकर माटी सिर पर
दुश्मन की धरती पर रखकर पांव, पैगाम भेजता हूं |


सौगंध मुझे गंगा, यमुना सतलज मे बह्ते पानी की|
राणा सांगा, प्रताप, शिवाजी की शौर्य-कहानी की |
हर बहना की राखी की  चौपालों की खलिहानों की |
सैखों, हमीद और योगेंद्र जैसे वीर जवानों की |
दुश्मन की पाप कहानी का उपसंहार लिखेंगें अब,
सरहद से यही संदेशा जन-जन के नाम भेजता हूं |


सरहद से मां मैं तुमको, अपना प्रणाम भेजता हूं |
बाबू को पैरीपौना, सबको राम राम भेजता हूं |

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