कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Thursday, October 24, 2013

प्रेम तो गज़ल है

रूह का अहसास है, गलत बयानी नहीं |
प्रेम
तो गज़ल है कोई कहानी नहीं |

गुलशन
के आंगन गर आई है खुशबू
ये नियति है किसी की मेहरबानी नहीं |

सागर
के किनारे बैठ ना आहें भरो
आंसू तो मोती है, महज पानी नहीं |

प्रीत
के गीत अभी कोई कैसे गाए
सुबह उदास है, शाम भी सुहानी नहीं |

किसी के दुख से भला उसे क्या वास्ता
जिसके दिल मे दर्द, आंख में पानी नहीं |

वक्त ने चूर किया है दर्प कितनों का
वह चोट करता है, छोड़ता निशानी नहीं |

असफल हो गये महारथी भी मैदान में
जिसने हर हाल में लड़ने की ठानी नहीं |
***

अरुण अर्णव खरे

 

 

Wednesday, September 4, 2013

चोरी की भली आदत

चोरी की भली आदत 

पहले दिल चुराकर तुमने अब नींद चुरा ली है |
पर चोरी की यह आदत लगती बड़ी भली सी है |

होंठ दबाकर दांतों से
और मंद-मंद मुस्काना |
तिरछा-तिरछा चल करके
बार-बार आंचल लहराना |
यह अदा पुरानी हो कर लगती नयी नयी सी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

पवन सन्निकट आता जब
छूकर सुरभित देह तुम्हारी |
बैरागी मन भी विचलित हो
तकता तब राह तुम्हारी |
प्रतीक्षा की एक घड़ी भी लगती एक सदी सी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

सपनो में तेरा आना-जाना
दिल को तो भाता है |
पर पूनम की रातों में
तारे गिनना नहीं सुहाता है |
हमने यह पीढ़ा तुमसे कितनी बार कही भी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

दो पल का साथ तुम्हारा
अमृत-कलश पी लेने सा |
बाहों के बंधन में सुख 
क्षण में सदियां जी लेने सा |
दुनिया में मुझ जैसा क्या कोई और धनी भी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

कांटो को चुन चुन कर मैने
राहों में सुमन बिखेरे |
मेरी झोली में जितने सुख है
अब सब के सब तेरे |
जिंदगी समीप तुम्हारे लगती खिली खिली सी है |
पहले दिल चुराकर तुमने  ****

अरुण अर्णव खरे

Tuesday, May 7, 2013

पितामह, अब तो प्रतिज्ञा तोड़ो तुम


गीत
और कितने चीरहरण देखोगे,
पितामह, अब तो प्रतिज्ञा तोड़ो तुम |

सौगंध की ढाल पितामह
अब और काम नहीं आएगी |
तुम पर गर्व करने वाली
पीढ़ी भी स्वंय लजाएगी |
इतिहास युगों-युगों तक कोसेगा
अब साथ दुर्योधन का छोड़ो तुम |

इसी शपथ के कारण ही तुम
बैचैन रहे जीवन भर |
और अंत समय में भी तुमको
सोना पड़ा शर-शैय्या पर |
इच्छा-मृत्यु भी नहीं मिलेगी अब
इसलिये तो सही पक्ष रथ मोड़ो तुम |

सिंहासन के प्रति निष्ठा ने
बड़ा अहित किया मानवता का |
कैसा विद्रूपित चेहरा अब
सामने आ रहा सत्ता का |
सिंहासन जाता है जाए पितामह
अपनी लाज बचाने तो दोड़ो तुम |

Monday, April 15, 2013

बहुत चाहा


बहुत चाहा
तुम्हारी छवि को नयनों से निकालना,
पर दर्पण से प्रतिबिम्ब के अलग होने सा
अनहोना है यह
बार-बार 
इस बात का सत्यापन होता रहा |

बहुत चाहा
तुम्हारे नाम को ह्रदय से निकाल कर
हवा में उछालना
पर चुम्बक से लोहे के विकर्षण सा
असंभव है यह
बार-बार 
इस बात का उदाहरण मिलता रहा |

बहुत चाहा
तुम्हारी यादों को मन से निकालकर
विस्मृति मे सजा देना
पर गुलाब से सुरभि की विमुक्ति जितना ही
अनैसर्गिक है यह
बार-बार
इस तथ्य का प्रतिपादन होता रहा |

अतएव
संभव नहीं हुआ
तुम्हारी छवि को ह्रदय से निकालना
तुम्हारा नाम हवा में उछालना
तुम्हारी यादों को विस्मृति मे सजा पाना
तुम
कोसों दूर रह्कर भी
यहीं कहीं आस पास लगते हो
तुम्हारी सुधियां जब तब
शांत ह्र्दय-सरोवर में कंकर फेंक
लहरों को लहरा देती हैं
मुरझाते गुलाब की पंखुडियों को
फिर से खिला देती हैं
ऐसे ही क्षण तब
अमूल्य धरोहर बन जाते हैं |
और एक एक क्षण में हम
सौ-सौ युगों की जिंदगी जीने का
असीम सुख पाते हैं |

मुझको क्या भय


चुभन को पाले हुए हम अपने पांवों में |
मुझको क्या भय
मैं तो दर्द-दुखों के गुरुकुल का स्नातक हूं |

फूलों से ज्यादा मुझको कांटे भाते हैं |
तट को छोड़ ज्वारों से मेरे नाते हैं |
कितनी बार पा चुका मैं कष्टों में अबतक |
प्रथम श्रेणी प्रथम आने पर स्वर्ण पदक |
दुश्मन को शरण रखे हम अपने गांवों में,
मुझको क्या भय
मैं तो जंजालों वाले रूपक का नायक हूं |

अच्छे लगते हैं महलों से ज्यादा खंडहर |
प्रिए लगते हैं मुझको कोलाहल के स्वर |
कितनी बार कटु अनुभवों में बुना गया मैं |
समूचे विध्यालय का प्रतिनिधि चुना गया मैं |
मंजिल सदा तलाशी है पथरीली राहों में,
मुझको क्या भय
मैं पतझरी गीतों का सच्चा गायक हूं |

Friday, April 5, 2013

पहली नजर में प्यार का ...

 

Tuesday, February 26, 2013

जिंदगी मे प्यार फिर

थोडा सा सुक्रोज हो, थोडा सा सोडियम |
जिंदगी मे प्यार फिर, कभी ना होगा कम |


आइसोटोप प्यार के, कोई होते नहीं |
होता है नयूकिलयर भी, इसका और कहीं |
अपने आप में परिपूर्ण वेलेंसी इसकी,
केमिकल-बाण्डिंग भी ऐसी, है कहीं नहीं |
मन की उमंगें, तरंगें बन पहुंचती जब
रेडियोएक्टिव होता तन, जैसे थोरियम |  जिंदगी मे प्यार फिर ***


न दाब, न ताप पर, प्यार रूप बदलता नहीं,
मन होता है हलका, जैसे हीलियम भरी |
मुस्कान करती है किसी कूलेंट सा असर,
जब रूठते है वह, दिल होता है मरकरी |
वासना का एसिड यदि मन-जार मे नहीं है,
देखिए दमकेगा प्यार भी जैसे रेडियम |  जिंदगी मे प्यार फिर ***

Monday, February 25, 2013

सरहद से संदेशा मां के नाम

सरहद से मां मैं तुमको, अपना प्रणाम भेजता हूं |
बाबू को पैरीपौना, सबको राम राम भेजता हूं |


अबकी बरस है सुना वहां, गांव में सर्दी बहुत पडी |
मां तुम जलाकर रखती हो ना, रोज ध्यान से सिगडी |
नई रजाई सिलवा ली तुमने और बाबू को बंडी |
या बिट्टो को शाल दिला, ऐसे ही गुजर-बसर कर ली |
सच बतलाना मां कैसा है गठिया, खांसी बाबू की
बनवा कर जडी-बूटी वाला काढा, बाम भेजता हूं |


अगली बार छुट्टी लेकर जब भी मैं घर पर आऊंगा |
कम से कम एक धाम की मैं तुमको सैर कराऊंगा |
अट्ठारह की होगी बिट्टो अगले साल जुलाई में |
उसके लिए है रिश्ता भेजा, साथी की एक ताई ने |
धूमधाम से विदा करेंगें अपनी रानी बहना को,
पाती के संग रख आशीष, उसके नाम भेजता हूं |


दुश्मन तो काफिर है, लाशों के भी शीश काटता है |
हम सामने पड जाएं अगर, दिखाकर पीठ भागता है |
सच कहता हूं एक बार ये बंधे हाथ खुल जाएं अगर |
शत्रु की इंच-इंच धरा पर, लहरा देंगें तिरंगा फर फर |
हर वतन परस्त प्रण ले अभी, लगाकर माटी सिर पर
दुश्मन की धरती पर रखकर पांव, पैगाम भेजता हूं |


सौगंध मुझे गंगा, यमुना सतलज मे बह्ते पानी की|
राणा सांगा, प्रताप, शिवाजी की शौर्य-कहानी की |
हर बहना की राखी की  चौपालों की खलिहानों की |
सैखों, हमीद और योगेंद्र जैसे वीर जवानों की |
दुश्मन की पाप कहानी का उपसंहार लिखेंगें अब,
सरहद से यही संदेशा जन-जन के नाम भेजता हूं |


सरहद से मां मैं तुमको, अपना प्रणाम भेजता हूं |
बाबू को पैरीपौना, सबको राम राम भेजता हूं |

Friday, February 15, 2013

घर को तुमने शिवालय बनाया

मरूथल सा नीरव था जीवन मेरा,
तुमने शुभ-सुरभित चमन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस,
कोरे पृष्ठों को रामायण बना दिया |


तुमने होंठों से ना जितना कहा,
उससे अधिक वाचाल नयनो से कहा |
पहली मुलाकात मे जुबां ना खुली,
पर मन है ना फिर कभी बस मे रहा |


सुधियों से तुम्हारी मन कंचन हुआ,
साथ ने  देह को सुदर्शन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***


जिंदगी मे हर कदम कदम पर तुम,
छाया बनकर मेरे संग संग चले |
हताश ना कर सके मुझको कभी,
पथरीले रास्ते हों या फिर जलजले |


हर परीक्षा में सफल हम हुए और, 
मुझे महकता हुआ चंदन बना दिया |

लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***

तुमने रोपे थे जो पौधे कभी,
सुगंध उनकी भी अब छाने लगी है |
और सुवासित होगी बगिया हमारी,
ये उम्मीदें भी मन में जगी है |


घर को तुमने शिवालय बनाया,
जीवन-सफ़र को तीर्थाटन बना दिया |
लिखकर जिंदगी के दोहे सरस ***

Tuesday, February 12, 2013

मुक्तक



लगता है जैसे सबकुछ अपनी जगह ठहर गया है |
सब कुछ वैसा ही है फिर भी लगता नया नया है |
यह मोहब्बत है, प्यार है या है केवल आकर्षण
कोई तो बतलाए मुझको, आखिर माजरा क्या है |



लोगों से आप इस तरह ना मांगिये मशविरे |
कुछ पागल कहेंगें तो कुछ कहेंगें शिरफिरे |
पाने से ज्यादा जब मन केवल खोने का करे,
तो यही प्यार है, यही प्यार है अरे बावरे |




मन की भरी गागर भी जब रीती-रीती सी लगे |
हर धडकन सितार, हर सांस जब बांसुरी सी बजे |
यह प्यार का अहसास है पगले, इसमें डूबकर
टीस की अनुभूति भी सुखद, मीठी-मीठी सी लगे |




नयनों से नेह निमंत्रण दे, यूं बुलाया ना करो |
बेवजह अपने कंगन, चूडियां खनकाया ना करो |
कितनी बार कहा तुमसे, लजा जाता है चांद तक
छतपर बिना दुपट्टे के, अनायास जाया ना करो |


 

Monday, February 4, 2013

जंगल से कुछ दोस्त आए है ****



Wednesday, January 30, 2013

बापू


बापू
तुम सच मानो
हम तुम्हें भूले नहीं है,
हमें अभी तक याद है
तुम्हारे जनम और निर्वाण की तारीखें |



बापू
इन तारीखों में हम तुम्हें

बडी शिद्दत से याद करते है,
तुम्हारी समाधि पर श्रद्धा सुमन चडाते है, 
सांकेतिक चरखा चलाते है, भजन गाते हैं
दो मिनट का मौन भी धारण करते हैं
आपके नाम का दिन मे कितनी ही बार उच्चारण करते हैं |



बापू तुम बुरा मत मानो
प्रगति की दौड में
आगे बढने की होड में
भले ही हमसे विमुख हो गये हैं
आपके आदर्श, आपकी सीखें |
लेकिन हम तुम्हें भूले नहीं हैं
हमें अभी तक याद है
तुम्हारे जनम और निर्वाण की तारीखें
|

गीत : एक देहरी पर दीपक मैं धरूं


खुशियां नदी सी अविरल बहें |
ना कोई संत्रास, व्यथा रहे |
कोई ऐसा जतन तुम भी करो,
कोई ऐसा जतन मैं भी करूं |
 
जिन हथेलियों पर हो छाले,
उन हाथों में भी मेंहदी लगे |
बिवाई वाले पांवों की भी,
हल्दी-महावर शोभा बने |
 
रुखे अधरों पर हंसी तुम लिखो,
सूनी आंखों मे सपने मैं भरूं |
कोई ऐसा जतन ----
 
झोली खाली है क्या हुआ,
होंसलों में कमी ना हो मगर |
मंजिल दूर है यह भय ना हो,
कट जायेगा हर मुश्किल सफ़र |
 
इस राह के कांटे तुम चुनो,
और पथ को बुहारा मै करूं |
कोई ऐसा जतन ----
 
तम बहुत गहरा है लेकिन,
अमावस भी होते अनूठे नही ।
किरणें ना सही, जुगनू ही हो,
रोशनी की आस टूटे नहीं |
 
एक आंगन को रोशन तुम करो,
एक देहरी पर दीपक मैं धरूं |
कोई ऐसा जतन ----