कहानी, व्यंग्य, कविता, गीत व गजल

Wednesday, March 11, 2009

भारतीय टीम की जबर्दस्त वापसी

पानी के आसंन संकट के मद्देनजर भोपाल में इस वर्ष रंगों की वरसात नहीं हुई लेकिन यहां से हजारों किलोमीटर दूर हेमिल्टन में भारतीय क्रिकेटरों ने जो रन वर्षा की उसके निशान भारतीय क्रिकेट के इतिहास के पृष्ठों पर अमिट रूप से दर्ज हो गये । यह पहला अवसर है जब भारतीय टीम नयूजीलेण्ड के दौरे पर एकदिवसीय मैचों की ऋंखला में अजेय अग्रता हासिल कर चुकी है और ऋंखला में विजयी होकर ही स्वदेश लौटेगी । टी२० मैचों की ऋंखला में अपने प्रतिद्वंदियों से बुरी तरह हारने के बाद भारतीय टीम ने जिस तरह वापसी की, वह काबिले तारीफ है । पांच मैचों की ऋंखला में भारतीय टीम चार मैचों की समाप्ति पर ३-० से आगे हो गई है ।
एकदिवसीय मैचों की ऋंखला में भारतीय टीम का प्रदर्शन पूरे शबाब पर रहा । बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग सभी में भारतीय टीम ने उच्चस्तरीय खेल का प्रदर्शन किया । खासतौर पर भारतीय टीम की बल्लेबाजी ने तो आक्रामकता के नये आयाम ही रच डाले । सचिन तेंदुलकर के बल्ले से तीसरे एक दिवदसीय मैच में रनों की जो सरिता प्रवाहित हुई उसने उन लोगों को करारा जवाब दे दिया जो मास्टर ब्लास्टर की क्श्मता पर अविश्वास करने लगे थे । होली के दिन आयोजित चौथे मैच में वीरेंद्र सहवाग के बल्ले ने जो आतिशी धमाल मचाया उसने ना केवल ऋंखला भारत के नाम लिख दी अपितु भारत के एक दिवदसीय क्रिकेट इतिहास का सबसे तेज शतक का कीर्तिमान भी रच दिया । जिस दिन भी सहवाग अपने चरम पर हों उंहें बल्लेबाजी करते देखना अपने आप में ना केवल आहलादकारी है अपितु किसी अजूबे करतब को साकार होते देखने जैसा भी है । वर्तमान में उनसे बेहतर आक्रामक बल्लेबाज कोई नहीं है, जो अपनी तकनीकी खामियों के बावजूद दुनिया के किसी भी गेंदबाज की बखिया उधेड कर रख सकता है ।
कप्तान धोनी भारत के सफलतम कप्तान बनने की राह पर अग्रसर हैं । उनकी कप्तानी में भारतीय टीम हर मैच के बाद निखर रही है और सफलता की नई कहानियां लिख रही है । नयूजीलेण्ड में इससे पहले कभी भी भारतीय टीम ने ऋंखला में जीत का स्वाद नहीं चखा था । नयूजीलेण्ड में भारतीय टीम का कीर्तिमान सदा ही खराब रहा है । इस ऋंखला से पूर्व तक भारतीय टीम ने वहां खेले गये २४ मैचों में से केवल सात में ही जीत पाई थी ।
कप्तानी करते हुये धोनी नितांत सहज और तनावरहित नजर आते हैं, जो उनके एक परिपक्व कप्तान होने का उदाहरण है । उंहोंने टीम मे आत्मविश्वास जगाया है और टीम को जीतने का मंत्र दिया है । दिवदसीय ऋंखला में जीत के बाद अब भारतीय टीम के सामने टेस्ट सीरीज जीतने की भी चुनौती है । शुभ कामनायें ।

भारतीय टीम की जबर्दस्त वापसी

पानी के आसंन संकट के मद्देनजर भोपाल में इस वर्ष रंगों की वरसात नहीं हुई लेकिन यहां से हजारों किलोमीटर दूर हेमिल्टन में भारतीय क्रिकेटरों ने जो रन वर्षा की उसके निशान भारतीय क्रिकेट के इतिहास के पृष्ठों पर अमिट रूप से दर्ज हो गये । यह पहला अवसर है जब भारतीय टीम नयूजीलेण्ड के दौरे पर एकदिवसीय मैचों की ऋंखला में अजेय अग्रता हासिल कर चुकी है और ऋंखला में विजयी होकर ही स्वदेश लौटेगी । टी२० मैचों की ऋंखला में अपने प्रतिद्वंदियों से बुरी तरह हारने के बाद भारतीय टीम ने जिस तरह वापसी की, वह काबिले तारीफ है । पांच मैचों की ऋंखला में भारतीय टीम चार मैचों की समाप्ति पर ३-० से आगे हो गई है ।
एकदिवसीय मैचों की ऋंखला में भारतीय टीम का प्रदर्शन पूरे शबाब पर रहा । बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग सभी में भारतीय टीम ने उच्चस्तरीय खेल का प्रदर्शन किया । खासतौर पर भारतीय टीम की बल्लेबाजी ने तो आक्रामकता के नये आयाम ही रच डाले । सचिन तेंदुलकर के बल्ले से तीसरे एक दिवदसीय मैच में रनों की जो सरिता प्रवाहित हुई उसने उन लोगों को करारा जवाब दे दिया जो मास्टर ब्लास्टर की क्श्मता पर अविश्वास करने लगे थे । होली के दिन आयोजित चौथे मैच में वीरेंद्र सहवाग के बल्ले ने जो आतिशी धमाल मचाया उसने ना केवल ऋंखला भारत के नाम लिख दी अपितु भारत के एक दिवदसीय क्रिकेट इतिहास का सबसे तेज शतक का कीर्तिमान भी रच दिया । जिस दिन भी सहवाग अपने चरम पर हों उंहें बल्लेबाजी करते देखना अपने आप में ना केवल आहलादकारी है अपितु किसी अजूबे करतब को साकार होते देखने जैसा भी है । वर्तमान में उनसे बेहतर आक्रामक बल्लेबाज कोई नहीं है, जो अपनी तकनीकी खामियों के बावजूद दुनिया के किसी भी गेंदबाज की बखिया उधेड कर रख सकता है ।
कप्तान धोनी भारत के सफलतम कप्तान बनने की राह पर अग्रसर हैं । उनकी कप्तानी में भारतीय टीम हर मैच के बाद निखर रही है और सफलता की नई कहानियां लिख रही है । नयूजीलेण्ड में इससे पहले कभी भी भारतीय टीम ने ऋंखला में जीत का स्वाद नहीं चखा था । नयूजीलेण्ड में भारतीय टीम का कीर्तिमान सदा ही खराब रहा है । इस ऋंखला से पूर्व तक भारतीय टीम ने वहां खेले गये २४ मैचों में से केवल सात में ही जीत पाई थी ।
कप्तानी करते हुये धोनी नितांत सहज और तनावरहित नजर आते हैं, जो उनके एक परिपक्व कप्तान होने का उदाहरण है । उंहोंने टीम मे आत्मविश्वास जगाया है और टीम को जीतने का मंत्र दिया है । दिवदसीय ऋंखला में जीत के बाद अब भारतीय टीम के सामने टेस्ट सीरीज जीतने की भी चुनौती है । शुभ कामनायें ।

Tuesday, March 3, 2009

तीन मार्च का काला दिन

३ मार्च का दिन दुनिया के खेल इतिहास में सदा के लिये काले अक्शरों मे दर्ज हो गया है । इस दिन पाकिस्तान के शहर लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम के बाहर जो कुछ भी घटा उसने सारी मानवता को शर्मसार कर दिया । इस घटना की तुलना १९७२ मे ५ सितंबर को म्युनिख ओलिम्पिक के दौरान फिलीस्तीनी - गुरिल्लाओं द्वारा ११ इजराइली एथलीटों की हत्या से ही की जा सकती है । मानवता के दुश्मनों ने शांती और भाईचारे का संदेश देने वाले खेल मैदानों को भी अपने वहशीपन का ठिकाना बना लिया है यह सारी दुनिया के लिये चिंता का सबब है ।
लाहौर मे श्री लंका की टीम के ऊपर हुये आतंकवादी हमले में पांच श्री लंकाई खिलाडियों के घायल होने की खबर है तथा आम नागरिकों सहित सात या आठ सुरक्शा कर्मियों के मारे जाने की खबर है । पाकिस्तान में क्रिकेट की गतिविधियां वैसे भी सिमट गई है । कोई भी देश पाकिस्तान आकर खेलना नहीं चाहता । कोई भी अंतर्राश्ट्रीय टूर्नामेंट वहां आयोजित नहीं हो पा रहा है । चैंपियंस ट्राफी की मेजवानी उससे पहले ही छीनी जा चुकी है । अब इस घटना के बाद उसकी विश्व कप मेजबानी भी जा सकती है । २०११ के विश्व कप का वह भारत और श्री लंका के साथ सह-आयोजक है ।
जिस देश ने वहां क्रिकेट खेलने का साहस दिखाकर पाकिस्तान को वापस क्रिकेट की मुख्य धारा में लोटाने की कोशिश की उसे ही इसका सबसे बडा खामियाजा भुगतना पडा । सारी दुनिया में आतंकवाद के पोशक के रूप में कुख्यात पाकिस्तान के हाथों में भी अब आतंकवादियों की लगाम नहीं रह गई है । स्वात घाटी मे तालीबान के सामने घुटने टेक देने के सप्ताह भर के अंदर ही आतंकवादियों ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है कि अब उनकी अगली मंजिल पाकिस्तानी सत्ता पर अपनी धौंस जमाकर सारे पाकिस्तान में तालीबानी - सत्ता काबिज करना है ।
लाहौर मे श्री लंका की टीम के ऊपर हुये आतंकवादी हमले की जितनी निंदा की जाये कम ही है । आतंकवादी अपनी सफलता पर भले ही जश्न मनालें लेकिन दुनिया से मानवीय मूल्यों को वे कभी खत्म नहीं कर सकते । हर पाशविक शक्ति का विनाश भूतकाल में भी हुआ है और भविश्य में भी इसके लिये जगह नहीं है ।

Friday, February 27, 2009

बुरी तरह चित्त हुये चैंपियन

नयूजीलैण्ड का दौरा सदा ही भारतीय क्रिकेट टीम पर भारी पडा है, यह बात एक बार फिर सिद्ध होती दिख रही है । कम से कम दौरे के दोनों शुरुआंती टी२० मैचों के परिणाम तो यही कहानी बयां करते लग रहें हैं । दोनो ही मैचों मे कीवियों ने जिस बुरी तरह से भारतीय टीम को धुना है उससे हर भारतीय क्रिकेट प्रेमी दुखी है । इस हार से एक बार फिर भारतीय टीम की विदेशी पिचों पर असहाय प्रवृत्ती उजागर हुई है । भारत की तथाकथित मजबूत बल्लेबाजी कितनी भंगुर है यह सबने देख लिया है । दोनो ही मैचों मे भारतीय टीम मे जीत का जज्बा तो दिखा ही नही । बल्लेबाजों ने तो टीम को लजाया ही, गेंदबाजों ने भी डुबोने में कोई कसर नहीं छोडी ।
वीरेंद्र सहवाग ने दोनो मैचों मे ताबड़तोड़ तरीके से शुंरुआंत तो की लेकिन उंहे पिच की नियति परख लेना जरा भी गवारा नहीं हुआ । उनके जल्दी आउट होने के बाद तो भारतीय बल्लेबाज मानो तू चल मैं आया का खेल खेलने लगे । किसी भी मैच मे भारतीय टीम लय मे नजर नहीं आई । जिस तरह से एक दिवसिय मैचों में ३०० रनों का टोटल भी बहुत अधिक सुरक्शित नहीं रह गया है उसी तरह टी२० मैचों में भी १८० रनों से कम स्कोर करने वाली टीम जीत के बारे में सोच ही नहीं सकती । भारत की बल्लेबाजी का ऊपरी क्रम पूरी तरह असफल रहा । टी२० के सफलतम भारतीय बल्लेबाज गौतम गंभीर सहित कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और युसुफ पठान कसौटी पर खरे नहीं उतर सके ।
पहले मैच में सुरेश रैना ने किसी तरह टीम को संघर्श करने लायक स्कोर तक पहुंचाया जबकि दूसरे मैच मे युवराज ही कुछ हद तक कीवी गेंदबाजों का सामना कर सके । लेकिन ये दोनो भी केवल एक एक मैच में ही जम सके । खिलाडियों के प्रदर्शन में निरंतरता का अभाव भारतीय टीम की पुरानी कमजोरी है ।
कीवी दौरा सदा ही भारत के लिये चुनौतिपूर्ण रहा है । पिछ्ले तीस वर्षों में भारतीय टीम कभी भी श्रंखला जीत कर स्वदेश वापस नहीं आई है । इस दौरे का कार्यक्रम भी सोच विचार कर नहीं बनाया गया है । टीम के लिये महत्वपूर्ण मैचों मे उतरने से पूर्व एक भी अभ्यास मैच नहीं रखा गया है । रही सही कसर टीम प्रबंधन भी पूरी कर रहा है । दूसरे मैच से पूर्व तो भारतीय टीम ने नेट प्रेक्टिस भी नहीं की । पहला मैच हारने के बाद ऐसा आत्मविश्वास दिखाना बेवकूफी ही माना जा सकता है । विकेट के नेचर से अनभिग्यता, मौसम और तेज ठंडी हवाओं के माहोल मे अभ्यस्त हुये बिना बाजी मारने का दुस्साहस ही टीम पर भारी पडा है ।
वैसे धोनी की टीम मे काफी दमखम है । एकदिवसीय मैचों में वह पूरे जोश खरोश से वापसी करेगी, यह उम्मीद है । एकदिवसीय श्र्ंखला का पहला मैच ३ मार्च को हेमिल्टन मे खेला जायेगा । गुड लक इंडिया । गुड लक धोनी ।

Thursday, February 26, 2009

मांग-पत्र

भारतीय मजदूर संघ के एक धडे ने
क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सक्रेटरी को भेजा एक मांग पत्र ।
श्री मान,
पहले आपने भारतीय टीम में एक मंत्री को शामिल किया,
फिर आपने कांट्रेक्टर को खिलाया ।
यहां तक कि आपने उसे टीम का कप्तान भी बनाया ।
इसके बाद
इंजीनियर को भी टीम में लिया ।
पर आज तक किसी लेबर को मौका नहीं दिया ।
अब हमारी मांग पर विचार कीजिये ।
और अगली सीरीज मे अवश्य किसी लेबर को मौका दीजिये ।
(नोट : भारतीय टीम में माधव मंत्री, नारी कांट्रेक्टर और फ़ारुख इंजीनियर खेल चुके है )

Wednesday, February 25, 2009

टेनिस में बढ़ती भारतीय साख

भारत भले ही डेविस कप के विश्व-समूह से पिछले एक दशक से बाहर हो पंरतु ए.टी.पी. सर्किट में भारतीय टेनिस खिलाड़ियों की साख में दिनों-दिन इजाफा हो रहा है। पिछले दो तीन वर्षो में लिएण्डर पेस एवं महेश भूपति के अलावा भी अनेक भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है । इस वर्ष का आगाज भी भारतीय खिलाड़ियों के लिए शुभ और फलदायी रहा है । वर्ष के पहले टूर इवेण्ट चैन्नई ओपन में सोमदेव देववर्मन ने फायनल तक का सफर तय कर शानदार प्रदर्शन किया । फायनल तक के सफर में उन्होंने पूर्व विश्व नंबर एक स्पेन के कार्लोस मोया तथा घमाकेदार सर्विस करने वाले क्रोएशिया के इवो कार्लोविक को शिकस्त दी । इस सफलता के साथ 23 वर्षीय यह खिलाड़ी पिछले एक दशक में किसी ए.टी.पी. स्पर्द्धा के सिंगल्स फायनल में पहुंचने वाला मात्र तीसरा भारतीय खिलाड़ी बन गया ।
तत्पश्चात्‌ आस्टेलियाई-ओपन स्पर्द्धा में भारतीय खिलाड़ियों ने करिश्माई प्रदर्शन किया । यह पहला अवसर था जब किसी ग्राण्ड-स्लेम स्पर्धा में भारत ने दो खिताब जीते तथा एक में उपविजेता रहने का सम्मान अर्जित किया । इस स्पर्धा में बालकों के जूनियर वर्ग में 16 वर्षीय यूकी भॉवरी की विजय खासतौर पर आहलादकारी रही । इस विजय के साथ ही यूकी ना केवल दुनिया के नंबर एक जुनियर खिलाड़ी बन गए अपितु अपनी खेल-शैली, विविधता पूर्ण स्ट्रोक्स और कौशल से सभी को प्रभावित करने में सफल रहें । उनके अभ्युदय के साथ भारत को भविष्य का एक बेहतर एकल खिलाड़ी मिलने का विश्वास हो गया है । पूर्व में जो अपेक्षाएं प्रकाश अमृतराज, रोहन बोपन्ना, हर्ष मांकड़ आदि पूरी नहीं कर सके थे वे यूकी भॉवरी से पूरी हो सकती है । यूकी के पास बढ़िया सर्विस है, बेहतर कोर्ट कवरेज है तथा सबसे ऊपर जीतने की जिजीविषा है । जूनियर वर्ग से सीनियर वर्ग मे आने के दौरान जिस मानसिक दृढ़ता तथा लगन की जरूरत होती है वह यूकी के लिए परीक्षा की घड़ी होगी क्योंकि इसी दौरान बहुत से युवा-खिलाड़ी स्पर्द्धा के स्तर के अंतर को देखकर, मानसिक संत्रास में आ जाते है और सीनियर वर्ग में आकर गुमनाम हो जाते है । जीशान अली और नितिन कीर्तन इसके बेहतर उदाहरण है । दोनों ने ही जूनियर वर्ग में बेहतरीन प्रदर्शन किया किंतु सीनियर वर्ग में आते ही वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सकें । यूकी अभी किशोरवय में ही है तथा उनके पास सीनियर वर्ग में पैर जमाने के लिए भरपूर समय है । उन्हे जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए तथा होले-होले किंतु मजबूती के साथ अपने कदम बढाने चाहिए ।
सोमदेव देवबर्मन ने इस वर्ष पहली बार किसी ए.टी.पी. स्पर्द्धा के फायनल में पहुचने का करिश्मा किया । वह भारतीय सर्किट में काफी समय से सक्रिय थे लेकिन अमेरिका में रहते हुए उनके खेल में आशातीत सुधार हुआ है । वह डेविस कप टीम में भी स्थान पा चुके है । वर्तमान में भारत के पास एक भी भरोसेमंद एकल खिलाड़ी नहीं है जिस कारण भारत एक दशक से भी अधिक समय से विश्व-समूह में स्थान नहीं बना पा रहा है । भारत आखिरी बार 1998 में विश्व-समूह में खेला था । सोमदेव इस कमी को पूरा कर सकते है । लेकिन इसके लिए उन्हें निरंतर विश्व स्तर पर स्थापित खिलाड़ियों के विरूद्ध खेल कर अपने कौशल को निखारना होगा तथा मानसिक परिपक्वता दर्शानी होगी । वह 23 साल के हो चुके है तथा उन्हें स्वंय को सिद्ध करने के लिए बहुत अधिक अवसर नहीं मिल सकेगें । टेनिस संघ की नई नीति के तहत, जिसमें विदेशी नागरिकता वाले खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेंगे '' प्रकाश अमृतराज शायद ही डेविस कप टीम में स्थान बना पाएं । ऐसी स्थिति में सोमदेव के ऊपर ही डेविस कप जोनल मुकाबलों में भारत के एकल मुकाबलों का दारोमदार होगा । उन्हें अपने को स्थापित करने का इससे बेहतर अवसर उपलब्ध नहीं हो सकता ।
रोहन बोपन्ना भी ए.टी.पी. सर्किट में एक परिचित भारतीय चेहरा हैं । एकल में तो वह कुछ खास नहीं कर सके है लेकिन युगल में वह शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं । हाल ही में उन्होंने फिनलेण्ड के अपने साथी खिलाड़ी जार्को नेमीनेन के साथ दुनिया की नंबर एक जौड़ी अमेरिका के ब्रायन बंधुओं-बॉब एवं माइक को हराया है । सेन जोस, अमेरिका में खेली गई सेप ओपन में दोनों उपविजेता रहें । गत वर्ष बोपन्ना ने लास एजेल्स स्पर्द्धा में युगल खिताब जीता था तब उनके जौड़ीदार अमेरिका के एरिक ब्यूरोरेक थे । गत वर्ष ही वह दो अन्य स्पर्द्धाओं में उपविजेता रहे थे । वह आगे युगल में महेश-भूपति व लिएण्डर पेस से रिक्त होने वाले स्थान की पूर्ति कर सकते हैं, लेकिन वह भी बहुत युवा नहीं है । वह विलम्ब से विकसित होने वाले खिलाड़ियों की श्रेणी में रखे जा सकते है तथा यदि इसी प्रकार उनके खेल में निखार आता रहा तो वह अगले पांच वर्षो तक अपनी सेवाएं भारत की डेविस कप टीम में दे सकते है ।
अब चर्चा सानिया मिर्जा की । पिछला वर्ष इस हैदराबादी वाला के लिए काफी दुखद रहा था तथा वह विश्व रेंकिग में 30 वें स्थान से फिसल कर 137 वें स्थान तक जा पहुची थी । वर्ष 2009 उनके लिए और भारत के लिए भी नई उम्मीदें लेकर आया हैं । वह इस वर्ष वापस 100 खिलाड़ियों की फेहरिस्त में आ गई हैं । हाल ही में उन्होंने पट्टाया ओपन में अपने से ऊंची रेंकिग वाली खिलाड़ियों को हराकर उपविजेता का ताज पहना है । वर्ष की पहली ग्राण्ड स्लेम स्पर्द्धा आस्टेलियन ओपन में उन्होंने महेश भूपति के साथ मिलकर सहयुगल खिताब जीता था । यह उनका पहला ग्रेण्ड स्लेम खिताब है । गतवर्ष वह इसी स्पर्द्धा में रनर्स-अप रही थी । इस वर्ष उनसे ग्रेण्ड स्लेम सहित अन्य स्पर्द्धाओं में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद हैं । अब वह पहले से अधिक परिपक्व हो गई है तथा अपनी सेहत का भी खास ख्याल रख रही हैं । पिछले वर्ष वह अपनी चोटों से काफी पेरशान रहीं तथा इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा । इस वर्ष वह चुनिदा स्पर्द्धाओं में ही खेलकर इसकी भरपाई कर सकती है ।
कुल मिलाकर इस वर्ष अब तक टेनिस सर्किट में सक्रिय भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन काफी सधा हुआ रहा है । पुराने धुरंधर लिएण्डर पेस और महेश भूपति अपनी पुरानी चमक बरकरार रखे हुए हैं । सानिया मिर्जा की वापसी उम्मीद जगाने वाली है । सोमदेव देवबर्मन और युकी भांवरी भविष्य की उम्मीदों के पोषक बन कर उभरे हैं । उम्मीदों के ये सभी कितना परवान चढ़ा पाते हैं देखना दिलचस्प रहेगा ।

Monday, February 16, 2009

आई.सी.सी. का नया बखेड़ा

क्रिकेट की विश्व-नियंत्रक संस्था आई-सी-सी- ने क्रिकेट के 100 सबसे बढिया बल्लेबाजों एवं गेंदबाजों की सूची जारी कर नए विवादों को जन्म दिया है । इस सूची के प्रकाशन से भारत के करोड़ो क्रिकेट प्रेमियों को घोर निराशा हुई है और वे इसे भारतीय क्रिकेटरों के अपमान के रूप में देख रहे हैं । इस तरह की कोई भी सूची कभी भी आदर्श रूप में प्रकाशित हो ही नहीं सकती। समय-काल के हिसाब से खिलाड़ियों की खेल-शैली तकनीकी-कौशल और दक्षता में भारी परिवर्तन आया है। क्रिकेट के नियमों में भी समय-समय पर कई परिवर्तन किए गए है, इनमें से कई क्रिकेट को रोचक बनाने और इसकी लोकप्रियता बरकरार रखने के लिए किए गए हैं। लेकिन आई.सी.सी. ने अपनी सूची जारी करते हुए इन मोटी-मोटी वास्तविकताओं को भी ध्यान में नहीं रखा।..ऐसे में सूची को विवादों को जन्म तो देना ही था,...लेकिन इसने आई.सी.सी. की बेढंगी कार्यशैली को उजागर करने का कार्य भी बखूवी किया हैं। सर्वकालीन महान खिलाड़ियों की इस सूची में दुनिया के कई नामी-गिरामी खिलाड़ी इतने नीचे पहुॅच गये है .. कि उनके प्रशंशक यह देखकर बोखला गए है। कुछ दोयम दर्जे के खिलाड़ियों की उच्च रैकिंग देखकर सूची को अंतिम स्वरूप देने वालों की काबलियत पर हॅंसी आती है। उदाहरण के लिय भारतीय ओपनर सुनील गावस्कर को टेस्ट क्रिकेट में 20 वॉं स्थान मिला है । टेस्ट इतिहास में सर्वाधिक शतकों एवं 10,000 से अधिक रन बनाने का कीर्तिमान रचने वाले इस बल्लेबाज ने अपने जमाने में वेस्टइंडीज और आस्टेलिया के तूफानी गेंदबाजों को जिस कौशल से उन्हीं की सरनंजी पर धुना उसकी मिसाल तत्कालीन क्रिकेट इतिहास में नहीं है । श्रीलंका के कुमार संगकारा (6वॉ स्थान) आस्टेलिया के मैथ्यू हेडन (10वॉं स्थान) दक्षिण अफ्रीका के जेक केलिस (10 वॉं संयुक्त) पाकिस्तान के मोहम्मद युसुफ (12 वॉं) दक्षिण अफ्रीका के डडले नर्स (17 वॉं) आस्टलिया के माइक हसी संयुक्त (17 वॉं) तक को गावस्कर से तरजीह दी गई है । इनमें से कोई भी बल्लेबाज ... ना तो गावस्कर जैसे तकनीकी कौशल में सिद्ध हस्त हैं और ना ही गावस्कर कितना दीर्घ समय तक निरंतरता के साथ बल्लेबाजी कर सका है । यह तो एक उदाहरण है । इस सूची के पहले 20 खिलाड़ियों में तो टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक रनों एवं शतकों का कीर्तिमान अपने नाम पर लिखने वाले सचिन तैदुलकर का तो नाम ही नहीं है । उन्हें केविन पीटरसन और एस चंद्रपाल से भी नीचे 26 वें नम्बर पर रखा गया है । अन्य भारतीय बल्लेबाजों में राहुल दृविढ़ (30) गुकप्या विश्वनाथ (45), विजय हजारे (48), वीरेन्द्र सहवाग (51) दिलीप वेंगसकर (61) तथा पॉली उम्रीगर (98) नम्बर पर हैं जबकि मोहम्मद अजहरूद्वीन, वी.वी.एस.लक्ष्मण और सोरव गांगुली को 100 बल्लेबाजों की बिरादरी में कोई स्थान नहीं मिल सका है ।
कमोवेश यही हाल गेंदबाजों एवं एक दिवसीय क्रिकेट की सूचियों का भी हैं। आई.सी.सी. ने खिलाड़ियों की रेकिंग का क्या आधार बनाया.. यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। इतनी महत्वपूर्ण सूचियों को जारी करने से पूर्व आई.सी.सी. को संभावित विवादों का भी आकलन कर लेना था । सूची में जिस तरह से भारतीय खिलाड़ियों की रेकिंग में खिलवाड़ किया गया है उससे विश्व-किक्रेट में भारत और भारतीय खिलाड़ियों की बढ़ती साख को कमतर करने की सोची समझी साजिश भी अनेक लोगों को नजर आ रही हैं । कुछ लोग इसे दूसरे रूप में भी देख रहे हैं । आस्टेलिया, इंग्लैण्ड सहित अन्य देशों में क्रिकेट की घटती लोकप्रियता तथा आई.सी.सी. के तमाम प्रयासों के बावजूद.. दुनिया के अन्य देशों में अपेक्षित रूप से क्रिकेट का फैलाव ना हो सकने के कारण.. आई.सी.सी. द्वारा जानबूझ कर विवादों को जन्म देकर पूरी दुनिया में सुर्खियॉं बटोरने का कार्य किया गया है । बहरहाल वास्तविकता जो भी हो आई.सी.सी. ने अनेक महान खिलाड़ियों के साथ अशोभनीय मजाक किया है । जिसके लिए उसे स्पष्टीकरण देना चाहिए और माफी भी मांगनी चाहिए ।
कुछ दिन पूर्व डे-नाइट एक दिवसीय मैचों की तरह डे-नाइट टेस्ट क्रिकेट आयोजित करने के संबंध में भी विचार व्यक्त किए गए थे । कुछ देशों में क्रिकेट की घटती लोकप्रियता के तारतम्य में यह विचार प्रस्तुत किया गया । टी-20 क्रिकेट ने जिस तेजी से लोकप्रियता की ।ंचाईयों को छुआ है- उससे एक दिवसीय क्रिकेट पर संकट की छाया तो दिखाई पड़ती है पंरतु टेस्ट-क्रिकेट पर इसका कुछ असर होगा लगता नहीं है । पांच दिनों तक डे-नाइट क्रिकेट... दर्शकों को बहुत सहज प्रतीत होगा संदेहास्पद हैं । आज के तेज रतार समय में क्रिकेट की शास्त्रीयता वैसे भी युवा-पीढ़ी को ज्यादा नहीं भाती । उसे तेज गाडियों और बाईक की ही तरह तेज रतार खेल ही आकर्षित करता है । अतएव डे-नाइट टेस्ट क्रिकेट नए दर्शकों को अपनी ओर खींच सकने में समर्थ होगा ... यह दूर की सोचना होगा । टेस्ट क्रिकेट को वर्तमान रूप में केवल दिन में डी खेलते देना चाहिए । हॉ उसके नियमों में सामयिक परिवर्तन अवश्य होने चाहिए तथा नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल भी बढ़ना चाहिए ।